
Caste Census 2025 भारत के सामाजिक ढांचे को फिर से परिभाषित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल मानी जा रही है। इस जनगणना में पहली बार सभी जातियों का विस्तृत डेटा इकट्ठा किया जाएगा, जिससे अन्य पिछड़ा वर्ग यानी OBC सूची में बड़े बदलाव की पूरी संभावना जताई जा रही है। सरकार के सूत्रों के अनुसार, अब तक OBC लिस्ट में मौजूद कई जातियों को बाहर किया जा सकता है, जबकि आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से अधिक पिछड़े समुदायों को इसमें शामिल किया जा सकता है।
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डेटा-ड्रिवन प्रक्रिया से होगा वर्गीकरण
सरकार का उद्देश्य Caste Census 2025 के माध्यम से यह पता लगाना है कि किस जाति को वास्तव में सरकारी योजनाओं और आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। अब तक OBC लिस्ट में शामिल कई जातियां आर्थिक रूप से उन्नत हो चुकी हैं और सामाजिक रूप से भी अन्य वर्गों के बराबर आ चुकी हैं। ऐसे में उनकी स्थिति की दोबारा समीक्षा आवश्यक हो गई है। इस डेटा के आधार पर ही सरकार OBC वर्ग का पुनर्गठन करेगी और सूची से उन जातियों को हटाने पर विचार करेगी जो अब पिछड़े वर्ग की श्रेणी में नहीं आतीं।
न्यायमूर्ति रोहिणी आयोग की रिपोर्ट का प्रभाव
OBC वर्ग के भीतर भी आरक्षण का लाभ समान रूप से नहीं बंट पाया है। न्यायमूर्ति रोहिणी आयोग ने इस असंतुलन को उजागर किया और सुझाव दिया कि OBC को उप-वर्गों में बांटा जाए, ताकि अत्यंत पिछड़ी जातियों को अधिक लाभ मिल सके। इस रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार ‘कोटा के भीतर कोटा’ यानी Sub-Quota व्यवस्था लागू करने की योजना बना रही है। Caste Census 2025 इस दिशा में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
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आरक्षण की सीमा पर फिर मचेगी बहस
फिलहाल OBC को 27% आरक्षण प्राप्त है, जबकि कुल आरक्षण सीमा सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई 50% है। मगर हाल के राज्यस्तरीय सर्वेक्षणों जैसे कि बिहार और कर्नाटक के आंकड़ों में OBC की जनसंख्या 63% से ज्यादा बताई गई है। इससे आरक्षण सीमा को बढ़ाने की मांग फिर से तेज हो गई है। यदि केंद्र सरकार OBC सूची में संशोधन करती है तो यह बहस और भी गहराई से उठेगी कि क्या आरक्षण की सीमा भी बढ़ाई जानी चाहिए।
राज्य और केंद्र की OBC सूचियों में आएगी एकरूपता
Caste Census 2025 का एक और बड़ा उद्देश्य यह है कि राज्य और केंद्र सरकार की OBC सूचियों को एकसमान बनाया जाए। अभी अलग-अलग राज्यों में अलग OBC जातियां सूचीबद्ध हैं, जिससे केंद्र और राज्यों की नीतियों में असमानता रहती है। एकसमान जाति गणना से इन सूचियों को समन्वित करना संभव हो सकेगा, जिससे नीति निर्माण और लाभ वितरण अधिक सटीक हो पाएंगे।
राजनीतिक समीकरणों में भी बदलाव की आहट
जातिगत आंकड़ों के सार्वजनिक होने के बाद राजनीतिक दलों की रणनीति भी बदलना तय है। OBC को लुभाने वाले दलों को अब अपने घोषणापत्र और सामाजिक समीकरणों पर दोबारा मंथन करना पड़ेगा। Caste Census 2025 के आंकड़े चुनावी रणनीतियों के लिहाज से बेहद निर्णायक साबित हो सकते हैं। इसलिए कई पार्टियां पहले ही जनगणना को राजनीतिक मुद्दा बना चुकी हैं और इसका समर्थन या विरोध कर रही हैं।
सामाजिक न्याय के लिए एक निर्णायक क्षण
Caste Census 2025 को सामाजिक न्याय के नजरिए से बेहद अहम माना जा रहा है। यदि यह प्रक्रिया पारदर्शी तरीके से पूरी होती है, तो इससे देश के उन वर्गों को भी मुख्यधारा में लाया जा सकता है जिन्हें अब तक योजना और आरक्षण लाभों से वंचित रखा गया। इससे ‘सबका साथ, सबका विकास’ की दिशा में सरकार का दृष्टिकोण और भी मजबूत हो सकता है।
जनगणना से राजनीति पर प्रभाव
Caste Census 2025 सिर्फ एक आंकड़ों का संकलन नहीं है, बल्कि यह भारतीय राजनीति की दिशा और दशा को बदलने वाला ऐतिहासिक मोड़ बन सकता है। जातिगत आंकड़ों के सार्वजनिक होने से न केवल सामाजिक न्याय की नई परिभाषा गढ़ी जाएगी, बल्कि राजनीतिक दलों की रणनीति, गठबंधन, और चुनावी समीकरण भी पूरी तरह बदल सकते हैं। आइए विस्तार से समझते हैं कि जनगणना से भारतीय राजनीति पर क्या-क्या प्रभाव पड़ सकते हैं।
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