
पति द्वारा पत्नी की संपत्ति को बिना उसकी अनुमति के बेचना भारतीय कानून के तहत अवैध माना जाता है। अगर किसी प्रॉपर्टी की कानूनी मालिक पत्नी है, चाहे वह उसे खुद की कमाई से खरीदी हो, विरासत में मिली हो या उपहार स्वरूप प्राप्त हुई हो, तब उस पर उसका पूर्ण अधिकार होता है। इस स्थिति में पति उस संपत्ति को न तो बेच सकता है और न ही उस पर किसी तरह का नियंत्रण जता सकता है, जब तक कि उसे पत्नी की लिखित सहमति प्राप्त न हो।
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स्त्रीधन पर महिला का अधिकार
भारतीय कानून, विशेष रूप से हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और संपत्ति संबंधी न्यायिक निर्णयों के अनुसार, महिला की व्यक्तिगत संपत्ति पर उसका संपूर्ण अधिकार होता है। यदि पति बिना सहमति के ऐसी प्रॉपर्टी बेचने की कोशिश करता है, तो यह न केवल गैरकानूनी होगा, बल्कि पत्नी इसके खिलाफ कोर्ट में मामला दायर कर सकती है। इस प्रक्रिया में वह संपत्ति की बिक्री को रोकने के लिए स्थगन आदेश (Stay Order) भी प्राप्त कर सकती है।
पति की संपत्ति पर अधिकार
स्त्रीधन, यानी वह संपत्ति जो महिला को विवाह के समय, बाद में उपहार स्वरूप या अपनी कमाई से मिली हो, पर भी महिला का संपूर्ण नियंत्रण होता है। यह संपत्ति पति की नहीं मानी जाती और इसका उपयोग, बिक्री या हस्तांतरण करने का निर्णय केवल महिला का होता है। यह सिद्धांत भारतीय समाज में महिला के आर्थिक अधिकारों को मजबूती देता है।
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कानूनी अधिकार और न्यायिक निर्णय
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कई निर्णय इस बात की पुष्टि करते हैं कि अगर पत्नी संपत्ति की एकमात्र कानूनी मालिक है, तो उसका पति बिना उसकी सहमति के किसी भी तरह का ट्रांजेक्शन नहीं कर सकता। यहां तक कि अगर संपत्ति संयुक्त नाम में भी हो, तब भी दोनों की सहमति आवश्यक होती है।
कानूनी कार्रवाई और संपत्ति की सुरक्षा
अगर ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है कि पति पत्नी की प्रॉपर्टी बेचने का प्रयास करता है, तो पत्नी को चाहिए कि वह तुरंत रजिस्ट्रार कार्यालय, बैंक और जिला न्यायालय को सूचित करे। साथ ही, वह एक वकील की सहायता से कानूनी प्रक्रिया शुरू कर सकती है ताकि संपत्ति का अधिकार सुरक्षित रखा जा सके और उसे कोई आर्थिक नुकसान न हो।
संपत्ति से संबंधित सहमति और दस्तावेज़ी प्रमाण
पति और पत्नी के रिश्ते में भरोसा महत्वपूर्ण होता है, लेकिन संपत्ति जैसे मामलों में स्पष्ट दस्तावेज़ी सहमति का होना भी उतना ही आवश्यक है। ऐसे मामलों में ‘मौखिक सहमति’ का कोई कानूनी आधार नहीं माना जाता, इसलिए हमेशा लिखित सहमति और प्रॉपर्टी संबंधित दस्तावेज़ों की कॉपी रखना जरूरी होता है।
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