
भारतीय मिडिल क्लास परिवारों के लिए यह एक बड़ा फैसला होता है कि वे होम लोन (Home Loan) लेकर खुद का घर खरीदें या फिर किराए (Rent) के मकान में रहें। यह सवाल भावनाओं, आर्थिक मजबूरियों और भविष्य की योजनाओं से जुड़ा होता है। खासतौर पर मेट्रो शहरों में जहां रियल एस्टेट की कीमतें आसमान छू रही हैं, वहां यह निर्णय और भी जटिल हो जाता है। इस लेख में हम समझेंगे कि होम लोन लेना ज्यादा फायदेमंद है या किराए पर रहना। साथ ही यह भी जानेंगे कि किस स्थिति में कौन-सा विकल्प बेहतर साबित होता है।
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होम लोन लेने का गणित
होम लोन लेकर घर खरीदने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपकी हर ईएमआई-EMI एक तरह से आपकी संपत्ति (Asset) में निवेश होती है। जब आप होम लोन लेते हैं, तो बैंक आपको प्रॉपर्टी खरीदने के लिए पैसे देता है और आप उस राशि को किस्तों में चुका कर धीरे-धीरे घर के मालिक बन जाते हैं।
उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि आप ₹50 लाख का घर खरीदते हैं और ₹10 लाख डाउन पेमेंट करते हैं। बाकी ₹40 लाख के लिए बैंक से होम लोन लेते हैं, जिसकी अवधि 20 साल है और ब्याज दर 8.5% है। इस स्थिति में आपकी मासिक ईएमआई लगभग ₹34,000 होगी और 20 साल में कुल ₹81.6 लाख चुकाने होंगे। यानी ब्याज में ₹41.6 लाख अतिरिक्त भुगतान करना होगा।
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हालांकि, 20 साल बाद आपके पास खुद की प्रॉपर्टी होगी जिसकी कीमत समय के साथ बढ़ सकती है। यदि सालाना 6% की रफ्तार से प्रॉपर्टी की कीमत बढ़ती है, तो 20 साल बाद ₹50 लाख का घर लगभग ₹1.6 करोड़ का हो सकता है।
किराए पर रहने का तर्क
अब बात करते हैं किराए पर रहने की। ऊपर दिए उदाहरण को ही लें, तो ₹50 लाख की प्रॉपर्टी का औसतन किराया ₹15,000 प्रति माह हो सकता है। इसका मतलब सालाना ₹1.8 लाख और 20 साल में ₹36 लाख का खर्च। इसमें आपको कोई ब्याज नहीं देना होता और डाउन पेमेंट जैसी बड़ी राशि भी बच जाती है।
इस बची हुई राशि को अगर आप म्यूचुअल फंड या स्टॉक्स में निवेश करते हैं और औसतन 10-12% का रिटर्न मिलता है, तो आपकी कुल बचत का मूल्य 20 साल में ₹2 करोड़ तक हो सकता है।
टैक्स छूट बनाम लिक्विडिटी
होम लोन पर सरकार आपको टैक्स छूट भी देती है। सेक्शन 80C के तहत आप सालाना ₹1.5 लाख तक प्रिंसिपल अमाउंट और सेक्शन 24(b) के तहत ₹2 लाख तक ब्याज पर छूट का फायदा उठा सकते हैं। यह आपके टैक्स लायबिलिटी को कम करता है।
वहीं किराए पर रहने वालों को भी HRA के रूप में टैक्स में छूट मिलती है, लेकिन यह लिमिटेड होती है और सैलरी स्ट्रक्चर पर निर्भर करती है।
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होम लोन लेने पर आपकी कैश फ्लो यानी नकदी कम हो जाती है क्योंकि हर महीने ईएमआई देनी होती है। इसके विपरीत किराएदार के पास लिक्विडिटी ज्यादा होती है और वह फाइनेंशियली ज्यादा फ्लेक्सिबल होता है।
भावनात्मक जुड़ाव बनाम आर्थिक आजादी
अपना घर होना एक भावनात्मक संतुष्टि देता है, जहां आप स्वतंत्र होकर अपनी मर्जी से बदलाव कर सकते हैं। वहीं किराए के मकान में आपको मकान मालिक की शर्तों पर रहना पड़ता है।
लेकिन आर्थिक नजरिए से देखें तो किराए पर रहना उन लोगों के लिए ज्यादा बेहतर हो सकता है, जो करियर में बार-बार शहर बदलते हैं या जिन्हें अपने पैसे को ज्यादा बेहतर रिटर्न वाले विकल्पों में निवेश करना पसंद है।
कौन-सा विकल्प बेहतर?
यदि आप किसी स्थायी शहर में लंबे समय तक रहना चाहते हैं, आपके पास स्थिर आय है, और आप टैक्स छूट का पूरा लाभ उठा सकते हैं—तो होम लोन लेकर घर खरीदना एक बेहतर सौदा है।
दूसरी ओर, यदि आप करियर के शुरुआती पड़ाव पर हैं, बार-बार स्थानांतरण की संभावना है या आप निवेश के माध्यम से ज्यादा रिटर्न चाहते हैं—तो किराए पर रहना एक बेहतर रणनीति हो सकती है।