Cool Roof Technology: छत पर बस ये एक चीज लगाइए और घर रहेगा कूल-कूल, जानिए कैसे करता है कमाल!

तेज़ गर्मी में भी घर ठंडा रखने का अब है आसान तरीका! बिना महंगे AC या भारी बिल के, सिर्फ छत पर लगाइए ये खास कोटिंग और पाएं 10 डिग्री तक ठंडक। जानिए कैसे काम करती है ये चमत्कारी तकनीक जिसे सरकार भी कर रही है प्रमोट

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Cool Roof Technology: छत पर बस ये एक चीज लगाइए और घर रहेगा कूल-कूल, जानिए कैसे करता है कमाल!
Cool Roof Technology: छत पर बस ये एक चीज लगाइए और घर रहेगा कूल-कूल, जानिए कैसे करता है कमाल!

गर्मी के मौसम में जब तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, तो घरों के अंदर का तापमान भी असहनीय हो जाता है। ऐसे में Cool Roof Technology एक बेहतरीन समाधान बनकर सामने आ रही है। यह तकनीक विशेष प्रकार की कोटिंग या सामग्री का उपयोग करती है, जिसे छत पर लगाया जाता है और यह सूरज की किरणों को परावर्तित कर देती है, जिससे घर के अंदर का तापमान सामान्य से 5 से 10 डिग्री तक कम हो सकता है।

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Cool Roof Technology न केवल तापमान को नियंत्रित करती है, बल्कि बिजली के बिल में भी उल्लेखनीय कमी लाती है। यह तकनीक रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।

क्या है कूल रूफ टेक्नोलॉजी?

Cool Roof Technology एक प्रकार की सतह उपचार प्रणाली है जिसमें छत पर एक विशेष प्रकार की सफेद या हल्के रंग की कोटिंग की जाती है। यह कोटिंग उच्च स्तर की सौर परावर्तकता (solar reflectivity) और ऊष्मा उत्सर्जन (thermal emittance) क्षमता रखती है। इसकी मदद से सूरज की किरणें वापस परावर्तित हो जाती हैं और छत गर्म नहीं होती, जिससे घर के अंदर की गर्मी स्वतः कम हो जाती है।

कैसे काम करती है यह तकनीक?

जब पारंपरिक छत पर धूप पड़ती है, तो वह अधिकतर सौर ऊर्जा को अवशोषित कर लेती है और गर्म हो जाती है। यह गर्मी धीरे-धीरे घर के अंदर तक पहुंचती है, जिससे कमरे असहनीय रूप से गर्म हो जाते हैं। Cool Roof Technology में उपयोग की गई परावर्तक कोटिंग 80% तक सूरज की रोशनी को वापस कर सकती है। इसके परिणामस्वरूप छत का तापमान 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तक कम रह सकता है।

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क्यों जरूरी है यह तकनीक?

देश के शहरी इलाकों में तेजी से बढ़ते तापमान और हीट आइलैंड प्रभाव (urban heat island effect) को देखते हुए Cool Roof Technology की आवश्यकता दिन-ब-दिन बढ़ रही है। निम्नलिखित कारणों से यह तकनीक और भी ज्यादा जरूरी बन जाती है:

  • बढ़ती गर्मी के कारण एयर कंडीशनर और कूलर की खपत में वृद्धि
  • बिजली की अधिक खपत और उससे जुड़े खर्च
  • पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव
  • ऊर्जा संसाधनों पर दबाव

Cool Roof Technology न केवल इन समस्याओं को हल करती है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है।

किस प्रकार की सामग्री का होता है उपयोग?

Cool Roof के लिए मुख्य रूप से तीन प्रकार की सामग्री का उपयोग किया जाता है:

  • रिफ्लेक्टिव पेंट्स: यह सफेद या हल्के रंग के पेंट होते हैं जो UV और IR किरणों को परावर्तित करते हैं।
  • शीटिंग मैटेरियल: थर्मो प्लास्टिक या एलास्टोमेरिक जैसे पदार्थों से बनी चादरें जो छत पर बिछाई जाती हैं।
  • टाइल्स और स्लैब्स: विशेष प्रकार की कूल टाइल्स जिनमें प्राकृतिक रूप से सौर परावर्तक गुण होते हैं।

इनमें से कोई भी विकल्प अपनाया जा सकता है, लेकिन मौसम, बजट और छत की स्थिति के अनुसार चयन किया जाना चाहिए।

सरकार और संस्थानों की भूमिका

भारत सरकार ने Smart Cities Mission और Energy Conservation Building Code (ECBC) के तहत Cool Roof को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। हैदराबाद, अहमदाबाद और दिल्ली जैसे शहरों में पायलट प्रोजेक्ट्स के माध्यम से इस तकनीक को लागू किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त, सरकारी भवनों और स्कूलों में भी इसका तेजी से उपयोग हो रहा है।

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कितना होता है खर्च?

Cool Roof लगाने की लागत आपके छत के प्रकार और क्षेत्रफल पर निर्भर करती है। आमतौर पर रिफ्लेक्टिव कोटिंग की कीमत ₹20 से ₹50 प्रति वर्गफुट के बीच होती है। हालांकि यह लागत शुरुआती तौर पर थोड़ी अधिक लग सकती है, लेकिन बिजली के बिल में सालाना 20% तक की बचत इसे पूरी तरह से आर्थिक रूप से लाभकारी बनाती है।

किसे अपनाना चाहिए यह तकनीक?

Cool Roof Technology विशेष रूप से निम्नलिखित लोगों के लिए फायदेमंद है:

  • शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग जहां गर्मी अधिक होती है
  • छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायिक प्रतिष्ठान
  • स्कूल, कॉलेज और हॉस्पिटल जैसे बड़े परिसर
  • सरकारी भवन और पब्लिक हाउसिंग प्रोजेक्ट्स

क्या है भविष्य की संभावना?

Cool Roof Technology का भविष्य बेहद उज्ज्वल है। जैसे-जैसे पर्यावरणीय चिंताएं और ऊर्जा संकट बढ़ रहे हैं, यह तकनीक और भी अधिक लोकप्रिय हो रही है। कई स्टार्टअप्स और निर्माण कंपनियां इस क्षेत्र में निवेश कर रही हैं। साथ ही, रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy के क्षेत्र में यह एक महत्वपूर्ण सहायक तकनीक बनकर उभर रही है।

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