
शादी में क्यों लिए जाते हैं सात फेरे – यह सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है, विशेषकर जब वे विवाह जैसे जीवन के अहम मोड़ पर खड़े होते हैं। हिंदू धर्म में विवाह सिर्फ एक सामाजिक अनुबंध नहीं बल्कि एक धार्मिक संस्कार है जिसे सप्तपदी की प्रक्रिया से पूरा किया जाता है। यह एक ऐसा बंधन है जिसमें वर-वधू अग्नि के सामने सात फेरे लेकर सात जन्मों तक साथ निभाने का संकल्प लेते हैं। यह परंपरा न केवल सांस्कृतिक बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
हिंदू धर्म के अनुसार, विवाह को सिर्फ “शादी” या “मैरिज” कहना इसकी गहराई को कम करता है। संस्कृत में “विवाह” शब्द का अर्थ होता है – वि+वाह, अर्थात विशेष रूप से उत्तरदायित्व का वहन करना। यह जीवन का एक ऐसा पड़ाव है जो न केवल दो व्यक्तियों को जोड़ता है, बल्कि उन्हें सामाजिक, पारिवारिक और आध्यात्मिक जिम्मेदारियों की ओर अग्रसर करता है।
विवाह और 7 की संख्या का पौराणिक और वैज्ञानिक रहस्य
हिंदू धर्म में 16 संस्कार माने जाते हैं, जिनमें विवाह एक प्रमुख संस्कार है। इन संस्कारों में विशेष रूप से सात की संख्या का अत्यधिक महत्व है। जैसे कि सात जन्म, सात फेरे, सात वचन, सात सुर, इंद्रधनुष के सात रंग, सात महासागर, सात ऋषि, सात दिन, और मानव शरीर के सात चक्र। इन सभी प्रतीकों में सात का अंक एक पूर्णता और पवित्रता का संकेत माना जाता है।
भोपाल निवासी ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु विशेषज्ञ पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा के अनुसार, यह संख्या न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र मानी जाती है, बल्कि ब्रह्मांडीय नियमों से भी इसका गहरा संबंध है। इसलिए, जब वर और वधू अग्नि के समक्ष सात बार परिक्रमा करते हैं, तो वे न केवल इस जीवन में बल्कि सात जन्मों तक साथ निभाने का संकल्प करते हैं।
सप्तपदी और सात फेरों का आध्यात्मिक अर्थ
विवाह में लिए जाने वाले सात फेरे या सप्तपदी को हिंदू धर्म में विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है। यह केवल एक रस्म नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक है, जहां वर-वधू एक-दूसरे के साथ जीवन की सभी कठिनाइयों और सुखों को साझा करने का संकल्प लेते हैं। इन फेरों में प्रत्येक फेरा एक विशेष उद्देश्य और वचन के साथ जुड़ा होता है।
सप्तपदी का अर्थ होता है सात पगों की यात्रा – जिसमें पहला पग अन्न और आहार की व्यवस्था हेतु, दूसरा बल और स्वास्थ्य के लिए, तीसरा संपत्ति और समृद्धि हेतु, चौथा परिवार और संबंधों की मजबूती के लिए, पाँचवां संतान और उत्तम वंश के लिए, छठा जीवन भर की मित्रता और विश्वास हेतु और सातवां पग परस्पर प्रेम, निष्ठा और आध्यात्मिक एकता के लिए लिया जाता है।
विवाह सिर्फ शारीरिक नहीं, आत्मिक संबंध
शादी में सात फेरे लेने का अर्थ केवल एक धार्मिक परंपरा निभाना नहीं है, बल्कि यह शरीर, मन और आत्मा की एकता को दर्शाता है। यह एक ऐसा पवित्र बंधन है जिसमें दूल्हा-दुल्हन न केवल एक-दूसरे से बंधते हैं बल्कि समाज और ब्रह्मा की साक्षी में एक-दूसरे के धर्म, कर्तव्य और सम्मान को निभाने का वचन भी लेते हैं।
मान्यताओं के अनुसार, जब वर-वधू सात फेरे लेते हैं तो उनका बंधन केवल इस जीवन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वे अगले सात जन्मों तक एक-दूसरे के साथी बनते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म में विवाह को “सात जन्मों का साथ” कहा जाता है और इन फेरों को इस पवित्र रिश्ते की स्थिरता और अखंडता का आधार माना जाता है।
सात वचनों का जीवन पर प्रभाव
शादी में लिए गए सात वचन केवल वाणी के उच्चारण नहीं हैं, बल्कि वे जीवन भर निभाए जाने वाले नैतिक और आध्यात्मिक संकल्प हैं। ये वचन जीवन के हर चरण में पति-पत्नी को मार्गदर्शन करते हैं और उनके रिश्ते को मजबूती प्रदान करते हैं। इन वचनों के माध्यम से दोनों पक्ष एक-दूसरे की भावनाओं, ज़रूरतों और अस्तित्व का सम्मान करते हैं।
इन सात वचनों के कारण ही हिंदू विवाह एक ऐसा संस्कार बन जाता है जो केवल एक दिन की रस्म नहीं, बल्कि जीवनभर की साझेदारी का प्रतीक बन जाता है।
सात फेरों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
यदि इस परंपरा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो सात का अंक जीवन के कई हिस्सों में संतुलन और पूर्णता का प्रतिनिधित्व करता है। उदाहरण के लिए, इंद्रधनुष के सात रंग हमारे दृष्टि चक्र से जुड़े होते हैं, सात सुर हमारे श्रवण तंत्र से, और मानव शरीर के सात चक्र हमारे ऊर्जा तंत्र से संबंधित होते हैं। यही कारण है कि सात फेरों की परंपरा केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक और ऊर्जा विज्ञान की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।
विवाह को समझें सिर्फ रस्म नहीं, जीवन दर्शन
शादी में लिए गए सात फेरे एक गहरी जीवनदर्शन की झलक देते हैं। यह केवल वर-वधू का सामाजिक और कानूनी रूप से एक होना नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक मिलन है जो उन्हें जीवन भर एक-दूसरे के साथ प्रेम, सहयोग, त्याग और विश्वास के साथ चलने की प्रेरणा देता है। इस परंपरा का उद्देश्य केवल उत्सव मनाना नहीं बल्कि जीवन के एक गंभीर और स्थायी बंधन को स्वीकारना है।