
नागिन द्वारा नाग की मौत का बदला लेने की कहानियाँ भारतीय लोककथाओं, धार्मिक मान्यताओं और बॉलीवुड फिल्मों का एक अहम हिस्सा रही हैं। फिल्मों में यह दृश्य बार-बार दोहराया जाता है कि एक नागिन अपने साथी नाग की मृत्यु के बाद वर्षों तक इंतजार करती है और फिर खूनी बदला लेती है। लेकिन क्या इस तरह की घटनाएँ वास्तव में होती हैं या यह केवल काल्पनिक कथाएँ हैं? वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इस रहस्य को समझने पर सच्चाई कुछ और ही सामने आती है।
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नाग-नागिन की बदले की कहानी की जड़ें कहाँ हैं
भारत में सांपों को धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व दिया जाता है। नाग पंचमी जैसे पर्वों में नागों की पूजा होती है, और कहा जाता है कि नाग-नागिन की जोड़ी पवित्र होती है। यहीं से एक आम धारणा बनी कि अगर नाग की हत्या हो जाती है, तो नागिन किसी भी कीमत पर अपने साथी की मौत का बदला लेती है। इन कहानियों को बल दिया गया जब फिल्मों और धारावाहिकों में इसे बार-बार रोमांचक तरीके से दिखाया गया।
1976 में आई सुपरहिट फिल्म ‘नागिन’ से लेकर टीवी सीरियल ‘नागिन’ तक, इन कथाओं ने आम जनमानस में इस विश्वास को मजबूत किया कि नागिन बदला जरूर लेती है। कुछ किस्सों में तो यह भी बताया गया कि नागिन मारे गए नाग की आँखों में देखे गए चेहरे को याद रखती है और उसी आधार पर हमलावर को ढूंढकर मार डालती है।
विज्ञान क्या कहता है नागिन के बदले को लेकर
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह धारणा केवल एक मिथक है। Herpetology (सांपों का अध्ययन करने वाला विज्ञान) विशेषज्ञों के अनुसार, सांपों का मस्तिष्क इतना विकसित नहीं होता कि वे बदले की भावना जैसे जटिल व्यवहार को समझ सकें। वे भावनाओं को नहीं पहचानते, ना ही चेहरों को याद रख सकते हैं।
Herpetologist श्रेष्ठ पचौरी के अनुसार, यह धारणा पूरी तरह से गलत है कि कोई सांप या नागिन इंसान के चेहरे को पहचान कर बदला ले सकती है। सांपों में दीर्घकालिक स्मृति या विशिष्ट व्यक्ति को पहचानने की क्षमता नहीं होती। इसलिए यह दावा कि नागिन फोटो जैसी आंखों में चेहरा कैद कर लेती है, विज्ञान की कसौटी पर बिल्कुल असत्य है।
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फेरोमोन और भ्रम की स्थिति
नागिन द्वारा बार-बार उसी जगह दिखने की एक वैज्ञानिक वजह होती है—मरे हुए सांप के शरीर से निकलने वाला फेरोमोन (एक प्रकार की गंध)। यह गंध अन्य सांपों को उस स्थान की ओर आकर्षित करती है। ऐसे में जब कोई नाग मारा जाता है, तो संभव है कि कुछ घंटों बाद वहाँ और सांप दिखाई दें। लोग इसे बदला लेने की शुरुआत मान लेते हैं, जबकि यह पूरी तरह से प्राकृतिक प्रक्रिया है।
यह भी देखा गया है कि गाँवों या जंगलों के आसपास इस तरह की घटनाओं को अंधविश्वास से जोड़कर प्रचारित किया जाता है, जिससे यह मिथक पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। लेकिन इसका वैज्ञानिक आधार अब तक नहीं मिल पाया है।
फिल्मों और धारावाहिकों की भूमिका
भारतीय सिनेमा और टीवी धारावाहिकों ने नागिन के बदले की अवधारणा को जिस तरह प्रस्तुत किया है, उसने इस मिथक को एक अलग ही स्तर पर पहुँचा दिया है। नागिन रूप बदलने वाली शक्तिशाली महिला, जो सौंदर्य और विष से लबालब होती है—ऐसे किरदारों ने जनता की कल्पना को जकड़ लिया है।
फिल्मों और सीरियल्स का उद्देश्य मनोरंजन होता है, लेकिन जब यही बातें वास्तविकता के रूप में फैलती हैं तो वे भ्रम उत्पन्न करती हैं। नागिन की पौराणिक छवि एक रोमांचक कथानक जरूर है, परंतु इसे वास्तविकता समझ लेना वैज्ञानिक सोच के विरुद्ध है।
भारत में प्रचलित कुछ मामलों की हकीकत
अक्सर समाचारों में यह पढ़ने को मिलता है कि किसी गाँव में एक परिवार के तीन सदस्यों को सांप ने काटा और गाँव में इसे नागिन का बदला बताया गया। लेकिन इन मामलों की जांच में या तो विषैले सांपों की अधिकता पाई जाती है, या फिर रात में सोते समय खुले में रहने से ऐसी घटनाएँ होती हैं। बदले जैसी कोई भावना इन घटनाओं के पीछे नहीं होती।
2019 में उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में ऐसा ही मामला सामने आया था जहाँ एक ही परिवार के तीन लोगों को सांप ने काट लिया। मीडिया में यह खबर तेजी से वायरल हुई और कहा गया कि यह नागिन का बदला था। लेकिन बाद में वन विभाग की जांच में पता चला कि यह क्षेत्र सांपों की प्राकृतिक गतिविधि का हिस्सा था और बदले जैसी कोई बात नहीं थी।
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