
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत में रहने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को है। यह निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेशी नागरिकों की वैधता और भारतीय संविधान की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। कोर्ट ने यह भी दोहराया कि भारत में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या मुसलमान Foreigners Act के तहत देश से निकाले जा सकते हैं, चाहे उनके पास UNHCR (United Nations High Commissioner for Refugees) का पहचान पत्र ही क्यों न हो।
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भारत की शरणार्थी नीति और अंतरराष्ट्रीय कानून में अंतर
सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह शामिल थे, ने यह स्पष्ट किया कि भारत ने 1951 Refugee Convention और 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इसलिए भारत पर Non-Refoulement यानी किसी विदेशी को उसके देश वापस न भेजने की बाध्यता लागू नहीं होती। कोर्ट ने कहा कि भारत के नागरिकों को संविधान के तहत मौलिक अधिकार प्राप्त हैं, परंतु विदेशी नागरिकों को यह अधिकार केवल कुछ हद तक ही दिए जा सकते हैं और वह भी कानून के अनुसार।
केंद्र सरकार का पक्ष और राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला
केंद्र सरकार ने अदालत में यह तर्क दिया कि रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ सुनियोजित तरीके से की जा रही है और यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है। कई रोहिंग्या भारत में फर्जी दस्तावेजों के सहारे रह रहे हैं, जिससे भारत के सामाजिक और आंतरिक ढांचे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इस तर्क को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया और कहा कि यदि किसी व्यक्ति की उपस्थिति भारत की सुरक्षा को खतरे में डालती है, तो सरकार को उसे देश से बाहर करने का अधिकार है।
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नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA)
Citizenship Amendment Act-Citizenship Amendment Act (CAA) 2019 के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी धर्मों के शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है। लेकिन यह प्रावधान मुसलमानों, खासकर रोहिंग्या पर लागू नहीं होता। इस अधिनियम के चलते रोहिंग्या समुदाय भारतीय नागरिकता के लिए पात्र नहीं है, जिससे उनकी स्थिति और भी जटिल हो गई है।
न्यायपालिका और कार्यपालिका की सामंजस्यता
इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने न केवल केंद्र सरकार की चिंताओं को मान्यता दी बल्कि यह भी दिखाया कि न्यायपालिका और कार्यपालिका संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देती हैं। कोर्ट ने यह माना कि यदि सरकार किसी विदेशी को राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर निर्वासित करना चाहती है, तो उसे ऐसा करने का अधिकार है और इसमें न्यायालय हस्तक्षेप नहीं करेगा।
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भविष्य की कानूनी स्थिति और प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या याचिकाकर्ताओं की याचिका पर अंतिम सुनवाई की अगली तारीख 31 जुलाई तय की है। इस दौरान कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि सभी रोहिंग्या मुसलमानों को कानूनी प्रक्रिया के तहत Foreigners Tribunal के माध्यम से अपने पक्ष रखने का अवसर दिया जाएगा। लेकिन अंततः यदि उनकी उपस्थिति अवैध पाई जाती है, तो उन्हें देश से निकाला जा सकता है। यह फैसला न केवल भारतीय नागरिकता नीति के तहत स्पष्टता लाता है, बल्कि विदेशियों की भारत में उपस्थिति को लेकर कानूनी मार्गदर्शन भी देता है।