Supreme Court on Property: पुश्तैनी ज़मीन में किस वारिस को कितना हिस्सा मिलेगा? सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आया सामने

अगर आप सोचते हैं कि जमीन के रेवेन्यू रिकॉर्ड में नाम दर्ज करवा लेने से आप उसके मालिक बन जाते हैं, तो यह खबर आपके लिए है। सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति विवादों को लेकर ऐसा फैसला सुनाया है, जिसने वर्षों से चली आ रही धारणाओं को तोड़ दिया है। जानिए क्या है फैसला और कैसे बदलेगा आपका कानूनी हक

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Supreme Court on Property: पुश्तैनी ज़मीन में किस वारिस को कितना हिस्सा मिलेगा? सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आया सामने
Supreme Court on Property: पुश्तैनी ज़मीन में किस वारिस को कितना हिस्सा मिलेगा? सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आया सामने

भारत में संपत्ति विवाद (Property Disputes) एक गंभीर सामाजिक और कानूनी चुनौती बनते जा रहे हैं। इन विवादों में ज़मीन की मिल्कियत, सीमा झगड़े, उत्तराधिकार के अधिकार और अवैध कब्जों से जुड़े मामले प्रमुख रूप से सामने आते हैं। हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने एक ऐसा महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जो संपत्ति के मालिकाना हक (Ownership Rights) को लेकर फैली गलतफहमियों को स्पष्ट करता है। अदालत ने साफ कहा है कि रेवेन्यू रिकॉर्ड (Revenue Records) में नाम दर्ज हो जाना यानी म्यूटेशन (Mutation) संपत्ति के स्वामित्व का प्रमाण नहीं है।

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सुप्रीम कोर्ट ने म्यूटेशन को बताया केवल प्रशासनिक प्रक्रिया

न्यायमूर्ति एम.आर. शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि किसी भी जमीन या संपत्ति पर मालिकाना हक केवल सिविल कोर्ट (Civil Court) द्वारा निर्धारित किया जा सकता है। म्यूटेशन की प्रक्रिया का उद्देश्य सिर्फ यह दिखाना होता है कि किसके नाम पर सरकार कर वसूल रही है। यह प्रक्रिया वित्तीय और प्रशासनिक प्रकृति की होती है, न कि कानूनी अधिकार की पुष्टि करने वाली।

संपत्ति विवादों के पीछे मुख्य कारण

देशभर में हजारों संपत्ति विवाद अदालतों में लंबित हैं। इन विवादों का एक बड़ा कारण है संपत्ति कानूनों (Property Laws) की जानकारी का अभाव और म्यूटेशन प्रक्रिया को स्वामित्व का प्रमाण मान लेना। बहुत से लोग मानते हैं कि रेवेन्यू रिकॉर्ड में नाम दर्ज करवा लेने से वे संपत्ति के मालिक बन जाते हैं, जो कि इस फैसले के अनुसार पूरी तरह से गलत है।

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दाखिल-खारिज (Mutation) क्या है?

म्यूटेशन, जिसे दाखिल-खारिज भी कहा जाता है, सरकारी रिकॉर्ड में संपत्ति के मालिक के नाम में परिवर्तन की प्रक्रिया है। जब कोई संपत्ति बेची जाती है या किसी उत्तराधिकारी को मिलती है, तब नए मालिक के नाम को रिकॉर्ड में दर्ज करवाया जाता है ताकि भू-राजस्व आदि का भुगतान ठीक से हो सके। लेकिन इससे कानूनी मालिकाना हक नहीं बनता। यह सिर्फ रिकॉर्ड अपडेट करने की प्रक्रिया है।

सिविल कोर्ट ही करेगा मालिकाना हक का निर्धारण

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि संपत्ति का स्वामित्व तय करने के लिए केवल वैध दस्तावेजों और कानूनी प्रक्रियाओं पर आधारित सिविल कोर्ट का फैसला ही अंतिम माना जाएगा। इसका मतलब यह है कि म्यूटेशन से मालिकाना हक नहीं बनता और यदि कोई विवाद हो तो मामला सिविल अदालत में जाकर ही तय होगा।

दस्तावेजों की भूमिका बेहद अहम

संपत्ति से जुड़े विवादों से बचने के लिए जरूरी है कि संबंधित सभी दस्तावेज जैसे बिक्री विलेख (Sale Deed), उत्तराधिकार प्रमाण पत्र (Succession Certificate), संपत्ति कर रसीदें और भूमि रिकॉर्ड संभाल कर रखे जाएं। ये दस्तावेज भविष्य में किसी भी विवाद की स्थिति में सबूत के रूप में उपयोग किए जा सकते हैं।

पुश्तैनी संपत्ति और उत्तराधिकार से जुड़े विवाद

भारत में पुश्तैनी संपत्ति (Ancestral Property) और उत्तराधिकार (Inheritance) के मामलों में भी म्यूटेशन को अक्सर स्वामित्व का प्रमाण मान लिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय ऐसे मामलों में स्पष्ट करता है कि उत्तराधिकार से प्राप्त संपत्ति पर भी मालिकाना हक सिविल कोर्ट ही तय करेगा। इसलिए वसीयत (Will), उत्तराधिकार प्रमाण पत्र और कानूनी सलाह लेना बहुत जरूरी है।

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फैसले का आम लोगों पर प्रभाव

यह फैसला उन लोगों के लिए राहत लेकर आया है, जिन्होंने अभी तक म्यूटेशन नहीं करवाया है या जिनका नाम रिकॉर्ड में है लेकिन वे कानूनी मालिक नहीं हैं। अब यह साफ हो गया है कि जब तक कोर्ट से प्रमाणित स्वामित्व नहीं मिलता, तब तक रिकॉर्ड में नाम होने का कोई कानूनी मतलब नहीं है। इससे कई झूठे दावों और फर्जीवाड़े पर भी रोक लगेगी।

कानूनी जानकारी और परामर्श की आवश्यकता

Property Law की जानकारी हर संपत्ति मालिक या उत्तराधिकारी को होनी चाहिए। संपत्ति से जुड़े मामलों में अनुभवी वकील की सलाह लेना जरूरी है, जिससे समय पर दस्तावेज तैयार करवा कर किसी भी विवाद से बचा जा सके।

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