
प्रयागराज। उत्तर प्रदेश (UP) के बेसिक शिक्षा विभाग से जुड़े 35 हजार से अधिक शिक्षकों को बड़ा झटका लगा है। इन शिक्षकों को अब पुरानी पेंशन योजना (Old Pension Scheme) का लाभ नहीं मिलेगा। इस बात की पुष्टि खुद उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद (Basic Shiksha Parishad) के सचिव सुरेन्द्र कुमार तिवारी ने की है। उन्होंने विशेष सचिव बेसिक शिक्षा को एक आधिकारिक पत्र भेजकर इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट कर दी है।
बेसिक शिक्षा परिषद ने क्यों किया पेंशन से इनकार?
बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव सुरेन्द्र कुमार तिवारी ने अपने पत्र में साफ किया है कि संबंधित शिक्षक ऐसे नियुक्ति आदेशों के अंतर्गत आते हैं, जो पुराने नियमों की परिधि में नहीं आते। यानी ये शिक्षक ऐसे सेवा शर्तों में नियुक्त हुए हैं, जिनमें पुरानी पेंशन योजना का कोई प्रावधान ही नहीं है। ऐसे में इन शिक्षकों को National Pension Scheme (NPS) के अंतर्गत ही पेंशन सुविधा मिल पाएगी।
इस पत्र के जारी होते ही प्रदेशभर में कार्यरत शिक्षकों, विशेषकर वर्ष 2005 के बाद नियुक्त शिक्षकों में भारी निराशा देखने को मिल रही है। शिक्षक संगठनों ने इसे उनके साथ अन्याय बताया है और जल्द ही इस पर आंदोलन की चेतावनी दी है।
शिक्षकों की संख्या और समय सीमा का ब्योरा
यह फैसला सीधे तौर पर उन 35,000 से अधिक शिक्षकों को प्रभावित करता है, जो बीते दो दशकों में प्रदेश के विभिन्न जिलों में प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त हुए हैं। इनमें से अधिकतर शिक्षक 2005 के बाद नियुक्त हुए हैं, जो सरकार की नई पेंशन योजना (NPS) के अंतर्गत आते हैं।
शिक्षकों की ओर से लंबे समय से यह मांग की जा रही थी कि उन्हें भी पुराने पेंशन नियमों के अंतर्गत लाया जाए, ताकि सेवा के बाद उन्हें वित्तीय सुरक्षा मिल सके। लेकिन अब बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से स्पष्ट इनकार के बाद यह रास्ता बंद होता दिख रहा है।
पुरानी पेंशन योजना बनाम नई पेंशन योजना: क्या है अंतर?
पुरानी पेंशन योजना यानी OPS (Old Pension Scheme) एक परिभाषित लाभ योजना है जिसमें सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी कर्मचारी को मासिक पेंशन मिलती है, जो उसकी अंतिम सैलरी पर आधारित होती है। यह योजना पूरी तरह सरकार द्वारा वित्तपोषित होती थी और कर्मचारी को पेंशन के लिए कोई अंशदान नहीं करना पड़ता था।
वहीं, नई पेंशन योजना यानी NPS (National Pension Scheme) में कर्मचारी और सरकार दोनों अंशदान करते हैं। यह एक परिभाषित अंशदान योजना है, जिसमें मिलने वाली पेंशन बाजार से जुड़ी होती है और इसमें निश्चित मासिक राशि की कोई गारंटी नहीं होती।
शिक्षकों में आक्रोश, संगठनों ने जताई नाराजगी
बेसिक शिक्षा परिषद के इस फैसले के बाद शिक्षक संघों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उत्तर प्रदेश शिक्षक महासंघ के पदाधिकारियों ने इस फैसले को शिक्षकों के साथ अन्याय बताया है। उनका कहना है कि सरकार एक ओर तो शिक्षा में गुणवत्ता सुधार की बात करती है, लेकिन दूसरी ओर शिक्षकों को उनके मूल अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।
कुछ संगठनों ने आगामी दिनों में लखनऊ में बड़े स्तर पर प्रदर्शन की चेतावनी भी दी है। उनका कहना है कि जब अन्य राज्यों में पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू किया जा रहा है, तब उत्तर प्रदेश में इसे पूरी तरह खारिज करना चिंताजनक है।
कानूनी लड़ाई का भी संकेत
सूत्रों के अनुसार, कुछ शिक्षक संगठनों ने इस मामले को लेकर कानूनी सलाह भी लेनी शुरू कर दी है। उनका मानना है कि नियुक्ति की प्रकृति और सेवा शर्तों की व्याख्या की जा सकती है, और यदि सरकार पुनर्विचार नहीं करती है तो वे अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे।
शिक्षा विभाग की स्थिति स्पष्ट, लेकिन विवाद गहराया
बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव द्वारा दी गई जानकारी ने तकनीकी तौर पर स्थिति को स्पष्ट जरूर किया है, लेकिन व्यावहारिक रूप से यह फैसला हजारों परिवारों को भविष्य की आर्थिक सुरक्षा से वंचित कर देता है। खास बात यह है कि यह निर्णय ऐसे समय आया है जब पुरानी पेंशन योजना को लेकर देशभर में बहस तेज हो चुकी है।
वित्तीय विशेषज्ञों का भी मानना है कि NPS में बाजार की अनिश्चितता के कारण कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति के बाद की सुरक्षा कमजोर हो सकती है, जबकि OPS में यह आश्वासन रहता है कि एक निश्चित राशि जीवन भर मिलेगी।
सरकार की चुप्पी पर भी उठे सवाल
अब तक इस मसले पर न तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से और न ही शिक्षा मंत्री की ओर से कोई आधिकारिक बयान आया है। शिक्षकों की इस व्यापक संख्या के भविष्य को प्रभावित करने वाले इस निर्णय पर सरकार की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है।
आगे की राह
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह मुद्दा चर्चा में ला दिया है कि क्या शिक्षकों जैसे सेवा प्रदाताओं को पुरानी पेंशन योजना का लाभ मिलना चाहिए? केंद्र और राज्य सरकारों के बीच इस पर सहमति नहीं बन पा रही है, लेकिन यदि यह मुद्दा शिक्षक संगठनों के आंदोलन और अदालत की लड़ाई तक जाता है, तो सरकार को फिर से इस पर विचार करना पड़ सकता है।