दिल्ली हाई कोर्ट का ज़बरदस्त झटका, सरकार को देने होंगे इस आदमी को पूरे 1.76 करोड़! जानिए क्यों?

दिल्ली हाई कोर्ट के धमाकेदार फैसले में केंद्र सरकार को देना होगा करोड़ों का हर्जाना। जानिए कैसे एक गलतfully जब्त संपत्ति ने रचा न्याय का इतिहास—यह कहानी पढ़ने के बाद आप भी कहेंगे, "न्याय अभी जिंदा है!"

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दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, सरकार देगी 1.76 करोड़!

दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया जिसमें केंद्र सरकार को एक व्यक्ति को 1.76 करोड़ रुपये का हर्जाना देने का आदेश दिया गया। यह मामला 23 साल पुराने कानूनी विवाद से जुड़ा हुआ है, जो कि संपत्ति के अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 300A से संबंधित है। कोर्ट के इस फैसले ने नागरिक अधिकारों और न्यायिक जवाबदेही की एक मजबूत मिसाल पेश की है।

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क्या है पूरा मामला?

यह विवाद दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित अंसल भवन के एक फ्लैट से जुड़ा है। इस संपत्ति को वर्ष 1977 में इमरजेंसी के दौरान SAFEMA (Smugglers and Foreign Exchange Manipulators Act) के तहत जब्त किया गया था। बाद में निरोध आदेश को रद्द कर दिया गया, लेकिन वर्ष 1998 में केंद्र सरकार ने इसे दोबारा जब्त कर लिया, जिससे संपत्ति के वास्तविक मालिक को उसका अधिकार नहीं मिल पाया।

1999 से लेकर 2020 तक केंद्र सरकार ने इस संपत्ति पर गैरकानूनी कब्ज़ा बनाए रखा, जबकि निरोध आदेश पहले ही खत्म किया जा चुका था। इस दौरान संपत्ति का स्वामी न्याय के लिए लड़ता रहा, और आखिरकार हाई कोर्ट ने न्याय का पक्ष लिया।

हाई कोर्ट की टिप्पणी और फैसला

जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव की एकल पीठ ने केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि भले ही संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं रह गया है, फिर भी यह संविधान के अनुच्छेद 300A के तहत एक कानूनी अधिकार है जिसे बिना कानून और उचित प्रक्रिया के छीना नहीं जा सकता।

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कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सरकार का 21 वर्षों तक उस संपत्ति पर कब्जा अवैध था और इसके लिए सरकार को मुआवज़ा और ब्याज सहित कुल 1.76 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा। यह रकम mesne profits (अवैध कब्जे के दौरान का किराया) और उसमें जुड़ा ब्याज भी शामिल करती है।

राज्य बनाम नागरिक

यह मामला केवल एक संपत्ति विवाद नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि जब राज्य खुद नागरिक के अधिकारों का उल्लंघन करता है, तब न्यायिक हस्तक्षेप कितना आवश्यक हो जाता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार को संविधान की सीमाओं के भीतर रहकर ही कार्य करना चाहिए, अन्यथा यह एक संवैधानिक अपराध के रूप में देखा जाना चाहिए।

जस्टिस कौरव ने यह भी टिप्पणी की कि राज्य की शक्तियां निरपेक्ष नहीं होतीं, बल्कि उन्हें संवैधानिक और वैधानिक सीमाओं में रहकर ही लागू किया जा सकता है। जब कोई कार्यपालिका या विधायी संस्था बिना उचित प्रक्रिया के किसी व्यक्ति की संपत्ति छीनती है, तो यह सीधे अनुच्छेद 300A का उल्लंघन है।

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